चुनाव 2020 एवं बिहार की सत्ता का सच

खगेंद्र कुमार

चीफ एडिटर, पॉलिटिकल इंडिया

पिछले 2 वर्षों के दौरान विभिन्न राज्यों में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। वर्ष 2018 में  राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों में बीजेपी  का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा । वैसे बाद में राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों में बीजेपी ने सरकार बनाने का प्रयास किया। मध्यप्रदेश में तो वह सरकार बनाने में सफल रही लेकिन राजस्थान में मुंह की खानी पड़ी I 2019 में आंध्र प्रदेश, दिल्ली, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र आदि राज्यों के चुनाव हुए लेकिन इन सभी चुनावों में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। इसके बावजूद यह कहना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का करिश्मा अब भी बरकरार है अतिशयोक्ति होगी।

इस समय मैं हाल में हुए बिहार चुनाव की बात करना चाहता हूं। इस चुनाव में आरजेडी के युवा नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव के मुद्दे को एक ठोस आधार दिया। आमतौर पर वर्षों से सामाजिक न्याय बिहार में चुनाव का एक बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन इस बार राजद के युवा नेता ने  चुनावी  मुद्दा सामाजिक न्याय के बजाय आर्थिक न्याय को बनाया। प्रधानमंत्री मोदी जी ने खुद ही इस चुनाव में काफी रूचि ली I दर्जनभर सभाएं की।राज्य के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने भी  प्रचार प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। एनडीए के ताक़तवर प्रचार-तंत्र का मुकाबला आरजेडी के तेजस्वी यादव अकेले ही करते रहे। कई नेताओं ने तो लालू प्रसाद के बहाने तेजस्वी पर बड़ी अभद्र टिप्पणियां भी की। लेकिन इस युवा नेता ने अपना आपा कभी भी नहीं खोया और बड़े संयमित ढंग और पुरे दम-ख़म के साथ प्रचार-प्रसार को अंजाम दिया I  उन्होंने रोजगार के मुद्दे उठाए, मजदूरों के मुद्दे उठाए,  खासकर उन मुद्दों पर जिसके कारण कोविड-19 के समय प्रवासी  बिहारी मजदूरों को राज्य व केंद्र सरकारों की उत्पीड़न भरी नीतियों का सामना करना पड़ा। पूरा चुनाव तेजस्वी बनाम प्रधानमंत्री प्रतीत हो रहा था । प्रधानमंत्री केंद्रीय नीतियों तथा योजनाओं की चर्चा करते रहे I

नीतीश जी अपनी लोकप्रियता खोते  हुए नजर आए। ऐसा लग रहा था कि तेजस्वी पर जनता, खासकर युवाओं पर विश्वास एवं भरोसा काफी बढ़ा है I उनकी सभाओं में काफी बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की साथ ही सभा में पूरा जोश खरोश भी नजर आ रहा । प्रधानमंत्री की सभा में भी भीड़ तो दिखती थी लेकिन सब कुछ थका थका सा प्रतीत होता था । अधिकाश समय लालू जी की 15 साल पुरानी सत्ता को ही कोसने में जाया कर देते थे I मुख्यमंत्री  की सभाओ में तेजस्वी के मुकाबले भीड़ भी कम होती थी और जोश तो बिल्कुल ही नहीं । नीतीशजी अपनी उपलब्धि गिनने के बजाय लालू राज को कोसने एवं भय दिखने में ही अधिकांश समय लगाते रहे I युवाओं में इसका बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता नज़र आया I इसके विपरीत तेजस्वी के रोजगार के मुद्दे ने युवाओं को काफी अकर्षित किया I

  इस बार तेजस्वी को एक युवा नेता के रूप में जनता की स्वीकारोक्ति मिल गयी । ज्ञातव्य हो की इस बार बिहार की  साम्यवादी पार्टियां आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी । चुनाव चुनाव का  अंतिम चरण आते-आते प्रधानमंत्री जी ने बिहार के चुनाव को राष्ट्रीयता के नाम पर भटकाने की पूरी कोशिश की । वस्तुतः तेजस्वी यादव को चुनावी सभाओं में जनता से मिल रहे समर्थन से प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री दोनों ही घबरा गए थे। चुनाव के अंतिम चरण तक पहुंचते-पहुंचते प्रधानमंत्री जी तो  आरजेडी, कांग्रेस  और इसके सहयोगी वामपंथी दलों को टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थक, राष्ट्रवाद विरोधी बताने लगे   और बीजेपी को राष्ट्रवाद के  रक्षक के रूप में  पेश करना शुरू कर दिया। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी को जंगल राज के युवराज की संज्ञा दी। लेकिन आम जनता पर उनकी इन  टिप्पणियां का कोई खास असर पड़ता नज़र नहीं आया I स्पष्ट दिख रहा था की नितीशजी से जनता का भरोसा लगभग टूट चुका है ।

 बिहार में बिना किसी हिंसा के चुनाव संपन्न हुआ। एग्जिट पोल के नतीजे आए। लगभग  सभी एग्जिट पोल के नतीजे आरजेडी और उसके सहभागी दलों के पक्ष में आया। 10 नवंबर को मतगणना का कार्य शुरू हुआ। पोस्टल बैलट की गिनती की  शुरुआती रुझान आम धारणा के विपरीत आरजेडी के पक्ष में जा रही थी। शायद विपरीत परिस्थिति को भंफाते  हुए अनेक मतगणना केंद्रों पर पोस्टल बैलट के साथ ही ईवीएम वोटों की गिनती शुरू कर दी गई I कुछ केन्द्रों पर ये गिनती आखिर में की गयी I

ईवीएम वोटों की गिनती के साथ ही दोनों पक्षों में कांटे का मुकाबला शुरू हो गया। नीतीश जी की यूनाइटेड जनता दल का प्रदर्शन शुरू से ही काफी खराब रहा। सामान्य ट्रेंड के विपरीत इस सिद्धांत को फैलाया गया कि इस बार बूथों की संख्या अधिक होने की वजह से गिनती कार्य देर रात तक पूरा होगा। महागठबंधन का मानना है कि सत्तारूढ़ दल के दबाब में सीटों के हीरा फेरी कर ली गयी I  कई जगहों पर गिनती समाप्त होने एवं  विरोध के बावजूद भी के विजित उम्मीदवारों को कई कई घंटों तक सर्टिफिकेट निर्गत नहीं किया गया। महागठबंधन का स्पष्ट मानना है कि गिनती में देरी का कारण केवल  हार-जीत का ताल-मेल बैठाना था I इसी ताल मेल के मद्देनज़र महागठबंधन के कई उम्मीदवारों को चन्द मतों से हरा दिया गया I इनका मानना है कि येन केन प्रकारेण देर रात एनडीए को मैजिक नंबर 122 को पार करा दिया गया। अब एनडीए 125 सीटों के साथ बहुमत प्राप्त कर चुकी है I

 जहां तक चुनाव आयोग का प्रश्न है वह चुनाव प्रक्रिया और गिनती प्रक्रिया दोनों को निष्पक्ष एवं बिना किसी दबाव के बता रही है। इस संबंध में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन देश की जनता को हमारे कई संवैधानिक संस्थानों की कार्यशैली और उन पर बन रहे दबाव के बारे में संदेह तो है ही । यह बात सही है की वीवीपैट के इस्तेमाल के बाद ईवीएम के सहारे होने वाले मतदान की गड़बड़ियों की शिकायतों में काफी कमी आई है Iचुनाव आयोग को भी पोस्टल बैलट की गणना उसी तरह करनी चाहिए जिस तरह अब तक की जा रही की जा रही थी। अगर वस्तुतः बैलट पोस्टल बाद में गिने गए हैं तो  इसका बाद में गिना जाना  अवश्य ही शंका का कारण बन सकता  है। निष्पक्ष चुनाव का निष्पक्ष होने के साथ-साथ निष्पक्ष दिखना भी आवश्यक है तभी लोगों का चुनाव आयोग में पूरी आस्था बनेगी I

यह आश्चर्य का विषय अवश्य है की दुनिया के उन्नत देशों में चुनाव के लिए बैलट  का उपयोग किया जाता है लेकिन हमारे यहां तो वर्षों ईवीएम का उपयोग बिना वीवीपैट के ही  किया गया और अब जब  वीवीपैट का उपयोग हो रहा है तो वीवीपैट से प्राप्त 10 परसेंट मतपत्रों (पेपर ट्रेल्स ) की गिनती अवश्य की जानी चाहिए। ऐसा करने से चुनाव आयोग के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा और अधिकारियों द्वारा कोई गड़बड़ी भी नहीं की जा सकेगी।

इसके बावजूद भी जो चुनाव नतीजे आए हैं उसमें आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी  है। इसका वोट प्रतिशत भी में सबसे अधिक अधिक है। आरजेडी को 75 सीटें मिली है और इसका वोट प्रतिशत 23.1 है। भारतीय जनता पार्टी 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर है और इस का वोट प्रतिशत 19.5 है जोकि पूर्व से 4.96 कम है । आरजेडी ने अपने वोट प्रतिशत में 4.79 का इजाफा किया है। नीतीश जी की पार्टी जेडीयू मात्र 43 सीटें  प्राप्त की है । जेडीयू का वोट प्रतिशत 19.5 है जो कि पूर्व की अपेक्षा 1.44 प्रतिशत कम है।  जेडीयू के अन्य सहयोगी पार्टियां वीआईपी एवं हिन्दोस्तानी अवाम मोर्चा (हम ) हैं I

इस दोनों पार्टियों को चार चार सीट प्राप्त हुए हैं। आरजेडी की सहयोगी पार्टी  कांग्रेस को 19 सीट मिली है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 9.48 है। वैसे तो कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर ही कहा जाएगा लेकिन इसने अपने पूर्व के वोट प्रतिशत में थोड़ा इजाफा किया है। आरजेडी की वामपंथी सहयोगी पार्टियों का प्रदर्शन बहुत ही अच्छा रहा है। सीपीआईएमएल ने 12 सीटें प्राप्त की है, सीपीआई ने 3 सीटें प्राप्त की है और सीपीआईएम ने 2 सीटें प्राप्त की है।वामदलों का स्ट्राइकिंग रेट सबसे अच्छा रहा है। सभी बाम दलों ने 4.62% वोट अर्जित किए हैं। वामदल आरजेडी के साथ मिलकर अपना जनाधार पुनः स्थापित करने में सफल रहा  है

इस चुनाव की एक महत्वपूर्ण बात यह है के कि इस  चुनाव के केंद्रबिंदु तेजस्वी यादव रहे I जिस तरह बिहार के पिछले चुनाव में माननीय नरेंद्र मोदी चुनाव के थे केंद्र बिंदु में थे उसी तरह इस बार तेजस्वी यादव चुनाव २०२० केंद्र बिंदु में रहे I युवा नेता की यह एक बड़ी उपलब्धि थी I

तेजस्वी यादव ने यूपीए के सभी घटक दलों के लिए जमकर प्रचार किया। उन्होंने लगभग 160 से अधिक चुनावी सभाओं को संबोधित किया। किसी किसी दिन तो उन्होंने 18 -19 सभाएं की। उनकी सभाओं में दिल खोलकर लोगों ने हिस्सा लिया और जोश में नजर आए। तेजस्वी की सभाएं उमंग से भरी होती थी और तेजस्वी की बातों का पुरजोर समर्थन करते हुए नजर आते थे। आरजेडी के वोट प्रतिशत से भी पता चलता है की इस बार आरजेडी ने  जाति बाधाओं को पार कर सभी वर्ग के लोगों का विश्वास हासिल किया। तेजस्वी ने पिता श्री लालू प्रसाद की चर्चा जरूर की लेकिन इस बार वह पूर्ण रुप से एक स्वतंत्र

छवि के साथ  आर्थिक न्याय का प्रश्न लेकर लोगों के बीच गए। उनके भाषण में स्पष्टता भी थी और  स्पष्टता के साथ साथकमिटमेंट भी दिखता था। पूरे चुनाव भाषण में  उनकी भाषा भी संयत रही। इस युवा नेता की भाषा और मंशा दोनों की खूब सराहना हुई I सत्ताधारी दलों की आलोचनाएं युवा नेता की छवि को धूमिल करने में नाकाम रही ।

 इस चुनाव की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नीतीश जी अपने सहयोगी दल बीजेपी से भी प्रताड़ित होते हुए नजर आए। एनडीए के एक घटक दल एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ हर सीट पर चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी के खिलाफ नहीं। चुनाव ही नहीं लड़ा बल्कि  नीतीश जी पर अभद्र टिप्पणियां भी करते रहे I पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने  तो बार-बार कहा कि एलजेपी और बीजेपी मिलकर सरकार बनाएगी। चुनाव के बाद नीतीश जी जेल जाएंगे। ऐसी अभद्र टिप्पणियों के बावजूद भी एलजेपी एनडीए का हिस्सा बना रहा। अकारण तेजस्वी पर बरसते रहे लेकिन चिराग की अभद्र टिपण्णी पर नीतीश जी चुप्पी साधे रहे। नीतीश जी को बेइज्जत करने का खेल चलता रहा। एल.जे.पी. ने लगभग 5.6% वोट काटकर नीतीश जी की पार्टी को बहुत छोटा कर दिया लेकिन एलजीपी को भी केवल एक ही सीट से संतोष करना पड़ा। इतना ही नहीं जेडीयू के सिद्धांतों को नजरअंदाज करते हुए प्रधानमंत्री जी ने भी कई ऐसी बातें कहीं जो नीतीश जी को अच्छी नहीं लगी होगी।

2005 से सी जेडीयू, बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाती रही रही है। जेडीयू और बीजेपी का संबंध 2013 से खराब होना शुरू हुआ जब नरेंद्र मोदी 2014 लोकसभा चुनाव के कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष बनाए गए । 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ चल रहे 17 वर्षों के पुराने रिश्ते को तोड़ डाला। इसके बाद धीरे-धीरे रिश्ते इतने खराब हो गए के नीतीश कुमार ने बीजेपी खासकर नरेंद्र मोदी पर बहुत तीखे प्रहार की प्रहार किए। यहां तक कि जब नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए पर टिप्पणी की तो नीतीश जी ने बिहार की जनता से नाखून और बाल के सैंपल देने का आव्हान किया  और यह बताने की कोशिश की मेरा और बिहारियों का डीएनए एक ही है जोकि जोकि नरेंद्र मोदी के डीएनए से सर्वथा अलग है।

इस समय तक नीतीश जी नरेंद्र मोदी की आंखों में आंखें डाल कर देखने में सक्षम थे। बीजेपी नेताओं के किसी भी टिप्पणी का करारा जवाब देते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने जेडीयू को भारी हार का सामना करना करना पड़ा लोकसभा में जेडीयू को केवल 2 सीटें मिली I

जवाबदेही स्वीकार करते हुए श्री नीतीश कुमार ने  मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। लेकिन जीतन राम मांझी शैडो मुख्यमंत्री बनने के बजाए कुछ स्वतंत्र निर्णय लेने लगे । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्हें कुर्सी से हटाया गया और फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने I 2015 के चुनाव में नीतीश जी ने लालू जी से समझौता कर लिया तथा  जेडीयू और आरजेडी का चुनावी गठबंधन हो गया I नीतीशजी इस गठबंधन के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार थे I ज्ञातव्य हो कि 2005 से 2013 तक  नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं के साथ मिलकर लालू जी पर इतनी अभद्र टिप्पणियां की कि यह सोचना सब सपने में भी असंभव था कि नीतीश कुमार लालू प्रसाद के साथ गठबंधन करेंगे। छोटे भाई का बड़े भाई के साथ गठबंधन हो गया I चुनाव के नतीजे भी शानदार रहे नीतीश जी मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी बने उपमुख्यमंत्री। इस समय भी आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी थी। जेडीयू और आरजेडी दोनों बराबर सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन आरजेडी को जेडीयू से अधिक सीटें प्राप्त हुई थी। यह बात नितीशजी को अंदर ही अंदर साल रहा था I लगभग डेढ़ साल बाद फिर नीतीश जी ने बीजेपी से गठबंधन कर सरकार बना ली।

आज फिर वही स्थिति सामने आ गई है, या उससे भी बुरी  I बीजेपी के मुकाबले जेडीयू बहुत ही छोटी पार्टी बनकर रह  गई है । साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री के कारण ही बिहार में एनडीए की सरकार बन पाई है ।  बीजेपी ने  जेडीयू से काफी अधिक सीटें पाई है  वैसे पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी के वोट  प्रतिशत में जेडीयू के अपेक्षा अधिक गिरावट आई है। यह बात भी सच  है कि नीतीश जी की छवि धूमिल हुई है और यह बात भी सही है के के बीजेपी ने जेडीयू को अपनी औकात दिखाने में  कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है I चिराग पासवान असल मायने में बीजेपी का ही चेहरा थे जिन्हें नीतीश जी के कद को सीमित रखने का भार दिया गया था। पिछले चुनाव के जनादेश की अवहेलना करते हुए पाला बदलने से भी जनता नीतीशजी से  नाराज थी।  नीतीश जी का नाम लेकर हर प्रकार के अनैतिक कार्यों पर नैतिकता की चासनी में लपेटने का प्रयास सफल नहीं हो सकता। यह बात स्पष्ट हो चुका है कि नीतीश जी कि नैतिकता किसी दूसरे नेताओं से ऊपर नहीं है। नीतीश जी के समय एक अन्य प्रकार की समस्या समाज में पैदा हो गई  है।  विभिन्न स्तरों पर नौकरशाही ने जनप्रतिनिधियों, शिक्षकों, समाजसेवियों और उनकी संस्थाओं पर अपना मकड़जाल मकड़जाल तैयार कर लिया है जिसके कारण सभी संस्थाएं मर रही है या  या मृतप्राय है। सरकार के जो भी अच्छे प्रयास हैं वह नौकरशाही की बलि चढ़ चुके हैं। नौकरशाहों द्वारा सरकार चलाना और अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता को गर्त में धकेलने  का कार्य बखूबी चल रहा है।

अच्छा होता कि चुनाव आयोग के प्रति लोगों में विश्वास बढ़ता अगर चुनाव आयोग सभी वैसे सीटों जहां धांधली का आरोप है वहां दुबारा वीवीपैट एवं ईवीएम से प्राप्त मतों  का मिलान कर देती और पोस्टल बैलट का लेखा-जोखा भी दोबारा प्रस्तुत कर देती। अगर सब कुछ सही है तो फिर वीवीपैट की गिनती या फिर पोस्टल बैलट की गिनती नहीं कराने का कोई  औचित्य प्रतीत नहीं होता । अगर इलेक्शन के दौरान अधिकारी दोषी पाए जा सकते हैं और उन्हें दंडित किया जा सकता है तो फिर काउंटिंग के समय अधिकारी क्यों नहीं दोषी हो सकते ? आज तक कितने ऐसे अधिकारी पाए गए हैं जोकि गलत काउंटिंग के कारण दोषी पाए गए गए हैं ? क्या काउंटिंग के समय शत प्रतिशत अधिकारी ईमानदार और निष्पक्ष हो जाते हैं? यह संभव नहीं है। कई अवसरों पर कई नेताओं, राजनैतिक पार्टियों, चुनाव विश्लेषकों , गैर सरकारी संगठनों, बुद्धिजीवियों इत्यादि द्वारा चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदेह के दायरे में प्रस्तुत किया गया है।

 इसके साथ साथ जेडीयू को इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है की बीजेपी निसंदेह नीतीश कुमार पर अनावश्यक दबाव पैदा करेगी Iआप माने ना माने या सही है कि बीजेपी ने जेडीयू के साथ मजबूरी में ही सरकार बनाई है। बीजेपी को सरकार बनाने का और कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं। एलजेपी के हाथों किए गए प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाया ।

युवा नेता तेजस्वी यादव ने पूरे चुनाव में एक कुशल एवं सक्षम नेता का परिचय दिया है I उन्हें पूरी मुस्तैदी से विपक्ष की भूमिका अदा करनी चाहिए ताकि बीजेपी बिहार को सामाजिक और आर्थिक न्याय के मुद्दे से भटका नहीं सके। बिहार की जनता ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन को  भरपूर समर्थन दिया है I इसमें कोई शक नहीं की यह  समर्थन बिहार में सामाजिक एवं आर्थिक न्याय स्थापित करने के लिए के लिए है I अतः सशक्त एवं  जागरूक प्रतिपक्ष के रूप में आरजेडी को अपनी भूमिका निभाने  के लिए तैयार रहना चाहिए I

(Source: photograph of Tejashwi Yadav election campaign taken from News 18 News gallary athttps://www.news18.com/photogallery/india/bihar-election-tejashwi-yadavs-supporters-crowd-his-residence-ahead-of-poll-results-3064940.html